Thursday, September 6, 2012

इत्तफाकन ...

वो पांवों में बैठ के, सिर के ताज बन गए 
हम जुबां पे रहे, बस ......... जुबां पे रहे ?
... 
उनसे लिपटना तो इत्तफाकन ही हुआ था 'उदय' 
पर ऐंसे सिमटे, कि - फिर निकल नहीं पाए ??
... 
सुनहरा मौक़ा है, आज उनके हांथों में 
चाहें तो, गिरा लें - बना लें, सरकार ? 
... 
हुआ है कुछ असर, उन पे भी हमारी आशिकी का 
सुनते हैं, कि - वो मन ही मन मुस्कुराने लगे हैं ?
... 
उन्हें कोई काम नहीं है, हमें फुर्सत नहीं है 
यूँ चाहतें, ... दोनों तरफ गुमशुम खड़ी हैं ? 

5 comments:

शिवम् मिश्रा said...

बहुत खूब ...

मुझ से मत जलो - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

रवीन्द्र प्रभात said...

एक और बेहतरीन रचना के लिए बधाइयाँ !

मुकेश कुमार सिन्हा said...

bahut behtareen...

HARSHVARDHAN said...

बहुत बढ़िया कविता, काबिले तारीफ ।
मेरी नयी पोस्ट -"क्या आप इंटरनेट पर ऐसे मशहूर होना चाहते है?" को अवश्य देखे ।धन्यवाद ।
मेरे ब्लॉग का पता है - harshprachar.blogspot.com

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत खूब..