अब इनसे तो 'उदय', कोई नंगा ही जीत सकता है
शंका है हमें, कहीं 'खुदा' भी न हार गया हो इनसे ?
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दो-चार दांव-पेंच सीखने में हर्ज ही क्या है 'उदय'
सुनते हैं, वही तो चमकते भाव हैं साहित्य के ??
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लोग खामों-खां इल्जाम लगा रहे हैं, कि - हमने छेड़ा है उन्हें
पर, ......... हकीकत तो ये है, कि - हमें छेड़ा गया है 'उदय' ?
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क्या गजब नौटंकी देखने को मिलती है अपने मुल्क में 'उदय'
उफ़ ! अर्थी सजाने की घड़ी में, सेहरा सज रहा भृष्टाचार का ?
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उनकी शर्तें पढ़-पढ़ के हम हैरान हैं 'उदय'
लगता नहीं, कि - हम कभी छप पाएंगे ?
1 comment:
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल २/१०/१२ मंगलवार को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप का स्वागत है
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