Sunday, September 30, 2012

नौटंकी ...

अब इनसे तो 'उदय', कोई नंगा ही जीत सकता है 
शंका है हमें, कहीं 'खुदा' भी न हार गया हो इनसे ? 
... 
दो-चार दांव-पेंच सीखने में हर्ज ही क्या है 'उदय' 
सुनते हैं, वही तो चमकते भाव हैं साहित्य के ??
... 
लोग खामों-खां इल्जाम लगा रहे हैं, कि - हमने छेड़ा है उन्हें 
पर, ......... हकीकत तो ये है, कि - हमें छेड़ा गया है 'उदय' ? 
... 
क्या गजब नौटंकी देखने को मिलती है अपने मुल्क में 'उदय' 
उफ़ ! अर्थी सजाने की घड़ी में, सेहरा सज रहा भृष्टाचार का ?
... 
उनकी शर्तें पढ़-पढ़ के हम हैरान हैं 'उदय' 
लगता नहीं, कि - हम कभी छप पाएंगे ?

1 comment:

Rajesh Kumari said...

आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल २/१०/१२ मंगलवार को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप का स्वागत है