Sunday, September 23, 2012

चित्तम चित्त ...


काश ! होता मुमकिन, आईने में सीरतें नजर आना 
तो सूरतों से 'उदय', कब का भरोसा उठ गया होता ? 
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ज़ुबानी जंग लड़ लड़ के, मिली है सल्तनत उनको 
अगर कुश्ती लड़ी उन्ने, तो वो हार जाएंगे ?????
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सरकार ........................ गिरे, न गिरे
पर, कुछ गिरे-गिरायों की भरपूर धूम है ?
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मंहगाई रूपी पटकनी से, चित्तम चित्त है जनता 
मगर अफसोस, कुछ शैतां ..... अब भी मजे में हैं ?
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कोई ऑक्सीजन, तो कोई ग्लूकोज हुआ है
लग रहा है, शैतां ..... अमर हो जाएगा ??

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

शैतान लाड़ला जो हो गया है।