Friday, September 21, 2012

नैतिकता ...

उन्हें नहीं आती तो न सही, हमें तो आनी चाहिए
आखिर .... शर्म का भी तो ईमान होता है ?????
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हम तो मुगालते में थे 'उदय', कि - रुपये पेड़ पे लगते हैं
पर, भला हो आज उस मानुष का, हमारी आँखें खोल दीं ?
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नैतिकता ... कैसी नैतिकता ?
हम तो सामान हैं, जिसका जी चाहेगा वो खरीद लेगा ??
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खरीद-फरोख्त का दौर है, भला हम क्यूँ पीछे रहें
गर हम न बिके, तो कल कोई और बिक जाएगा ?
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मंहगाई रूपी पटकनी से, चित्तम चित्त है जनता
मगर अफसोस, कुछ शैतां ..... अब भी मजे में हैं ?
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जुनून-ए-शायरी, कहाँ से कहाँ ले आया है हमको
किसी के हो रहे हैं हम, तो कोई अपना हुआ है ?

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