काश ! होता मुमकिन, आईने में सीरतें नजर आना
तो सूरतों से 'उदय', कब का भरोसा उठ गया होता ?
...
ज़ुबानी जंग लड़ लड़ के, मिली है सल्तनत उनको
अगर कुश्ती लड़ी उन्ने, तो वो हार जाएंगे ?????
...
सरकार ........................ गिरे, न गिरे
पर, कुछ गिरे-गिरायों की भरपूर धूम है ?
...
मंहगाई रूपी पटकनी से, चित्तम चित्त है जनता
मगर अफसोस, कुछ शैतां ..... अब भी मजे में हैं ?
...
कोई ऑक्सीजन, तो कोई ग्लूकोज हुआ है
लग रहा है, शैतां ..... अमर हो जाएगा ??
1 comment:
शैतान लाड़ला जो हो गया है।
Post a Comment