फेसबुक पे दुकानें तो सब की सजी-धजी दिख रही हैं 'उदय'
पर, मंहगाई की मार इत्ती है कि कहीं ग्राहकी नहीं दिखती ?
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अब इस कदर भी न मारो, तुम कुल्हाड़ी पे पांव
खच्च-खच्च-खच्च ... हमसे देखा नहीं जाता ?
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कहने को, तो वो, उन्हें अपना बाप कह रहे हैं
पर, हकीकत से, वे खुद रु-ब-रु हैं ???????
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हमारी खामोशियों की सजा कुछ इस तरह मिली है हमको
कि - खता किसी और की है, इल्जाम हम पे लगा है यारो ?
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ये उनपे नस्ल का असर है, या है हालात का
चोरी भी, और सीनाजोरी भी ???
3 comments:
नस्ली टिप्पणी का बुरा मान गये तो..
bahut badhiya
बढ़िया
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