एक हम हैं 'उदय', ................... जो सदियों से सोये नहीं हैं
और आज, उनका तड़के नजर आना, चर्चा का मुद्दा हुआ है ?
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संभावनाएँ मरती नहीं हैं 'उदय'
उम्मीदों के दिए आँधियों में भी जल रहे हैं ?
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छोडो तुम भृष्टाचार-औ-कालेधन के मुद्दे
आओ बैठकर, इसकी-उसकी बातें करें ?
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छपने का हुनर सीख के, हम क्या करेंगे 'उदय'
अभी तो हमें, ठीक से लिखना भी नहीं आता ?
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कोई चुल्लू भर पानी दे उसे, कि - वो डूब जाए
वैसे भी .......... अब जी कर क्या करेगा वो ?
1 comment:
यही अन्तर तो गहराता जा रहा है।
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