Sunday, August 5, 2012

गुमां ...

गर तुम कहो तो, ....................... 'हाँ' कह दूँ
वैसे भी, उनसे 'न' कहने की हिम्मत नहीं होगी ? 
... 
सच ! मुश्किल डगर है, फिर भी पग हमारे बढ़ रहे हैं 
हिन्दी की कहानी, हिन्दी की ज़ुबानी हम गढ़ रहे हैं !!
... 
न जाने कौन था, जो मुझे छू-कर चला गया 
हवाओं संग था, या हवा बन के चला गया ?
... 
बगैर दहाड़ के तुम, क्यूँ गुर्र-गुर्र-गुर्रा रहे हो 
गर शेर बनना है, तो दुम क्यूँ हिला रहे हो ? 
... 
न कर गुमां, तू अपने गोरे रंग पे गोरी 
नील पड़ जाएगा, तनिक छूने से मेरे ? 

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