Monday, August 6, 2012

दास्तान-ए-मुल्क ...


हर बार, बार बार, तुम क्या ढूँढते हो मुझमें 
एक बार, जुबां से ....... क्यूँ कह नहीं देते ? 
... 
ये डोर, कच्चे धागों की नहीं है दोस्त 
ये तो बंधन है ... प्रेम का - रक्षा का !
... 
तनिक रंज-औ-गम के दौर गुजर जाने दो 
फिर देखेंगे, तुम कितने सुन्दर दिखते हो ? 
... 
पुरुस्कारों की दौड़ में, हम सदा ही फिसड्डी रहे हैं 'उदय' 
वजह ..... उनके नियम-क़ानून, हमें कभी भाये नहीं हैं ? 
... 
दास्तान-ए-मुल्क, अब हम बयां कैसे करें 
इमानदारों की, बेईमान परीक्षा ले रहे हैं ? 

1 comment:

***Punam*** said...

दास्तान-ए-मुल्क, अब हम बयां कैसे करें
इमानदारों की, बेईमान परीक्षा ले रहे हैं ?

खूब....