Thursday, August 9, 2012

डुग-डुगी का रेला ...


अगर, अपना जमीर भी सौदाई होता 'उदय' 
तो शायद अपुन भी कभी के बिक गए होते ? 
... 
उफ़ ! फेसबुक पर भी कदम कदम पे मेला है 
कहीं नौटंकी, तो कहीं डुग-डुगी का रेला है ? 
...
श्रद्धांजलि क्यूँ नहीं दी हमने, इस बात पे सारा कुनबा भड़क उठा 
तब हमें कहना पडा, कि - क्या मुर्दे भी श्रद्धांजलि देते हैं कभी ?? 
... 
आज हमें भी ....... उनके जैसा होना होगा 
वर्ना, जीत-हार दोनों पे, रंज हमें ही होगा ? 
... 
जी के न चाहने पर भी, तुम्हें रुलाना पड़ता है 
वैसे तुम, खुद-ब-खुद हमसे लिपटते कब हो ? 

2 comments:

Archana Chaoji said...

जी के न चाहने पर भी.........
वाह!

प्रवीण पाण्डेय said...

गहरे बोल..