अगर, अपना जमीर भी सौदाई होता 'उदय'
तो शायद अपुन भी कभी के बिक गए होते ?
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उफ़ ! फेसबुक पर भी कदम कदम पे मेला है
कहीं नौटंकी, तो कहीं डुग-डुगी का रेला है ?
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श्रद्धांजलि क्यूँ नहीं दी हमने, इस बात पे सारा कुनबा भड़क उठा
तब हमें कहना पडा, कि - क्या मुर्दे भी श्रद्धांजलि देते हैं कभी ??
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आज हमें भी ....... उनके जैसा होना होगा
वर्ना, जीत-हार दोनों पे, रंज हमें ही होगा ?
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जी के न चाहने पर भी, तुम्हें रुलाना पड़ता है
वैसे तुम, खुद-ब-खुद हमसे लिपटते कब हो ?
2 comments:
जी के न चाहने पर भी.........
वाह!
गहरे बोल..
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