मत मारो, तुम मत पकड़ो, उन सत्ता के दामादों को
भले चाहे वो तोड़ के रख दें, अहिंसा की दीवारों को ?
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हे 'सांई', महफूज रखना तू मेरे दिल का जहाँ
वहां सिर्फ मैं नहीं, ....... बसता है सारा जहाँ !
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शायद उन्हें, हमारे अल्फाजों में, इंकलाबी तेबर नजर आए होंगे
वर्ना, पढ़ के चुप रहने की कोई और वजह मुमकिन नहीं लगती ?
2 comments:
बहुत काम शब्दों में बहुत कुछ लिख दिया है आपने . बहुत सुंदर भावों को संजोने के लिए आभार .
नजर न लगे अपनो को..
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