Thursday, August 16, 2012

महफूज ...


मत मारो, तुम मत पकड़ो, उन सत्ता के दामादों को 
भले चाहे वो तोड़ के रख दें, अहिंसा की दीवारों को ? 
... 
हे 'सांई', महफूज रखना तू मेरे दिल का जहाँ 
वहां सिर्फ मैं नहीं, ....... बसता है सारा जहाँ !
... 
शायद उन्हें, हमारे अल्फाजों में, इंकलाबी तेबर नजर आए होंगे 
वर्ना, पढ़ के चुप रहने की कोई और वजह मुमकिन नहीं लगती ? 

2 comments:

रेखा श्रीवास्तव said...

बहुत काम शब्दों में बहुत कुछ लिख दिया है आपने . बहुत सुंदर भावों को संजोने के लिए आभार .

प्रवीण पाण्डेय said...

नजर न लगे अपनो को..