मैं ... मौन रहूँ ...
बोलो ... कब तक मौन रहूँ ?
कब तक देखूँ ? मैं इन आँखों से -
कदम कदम पे भृष्टाचार !
और गली गली में अत्याचार !!
बोलो ... कब तक देखूँ ?
बोलो ... कब तक मौन रहूँ ??
कहीं किसी दिन फट न जाऊँ
मैं खुद ही, विस्फोटों-सा ?
चिथड़े-चिथड़े हो जाऊँ ?
और चिथड़े-चिथड़े कर जाऊँ ??
2 comments:
सब कुछ देख मन चीत्कार कर उठता है..
जब तक रहा जाये तब तक मौन रहिए ... आजकल का तो दौर ही मौन रहने का है !
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