जी चाहता है खो जाएं भीड़ में
जिसे चाह होगी, वो तलाश लेगा हमें ?
...
सच ! पता बदल भी लें, पर जज्बात कहाँ बदलेंगे
आज नहीं तो कल, हम फिर किसी से भिड़ लेंगे ?
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और कितना डूब के देखें हम तेरे जज्बात यारा
पानी का रंग भी, क्या कभी बदलता है सनम ?
...
'खुदा' जाने है या तुम, हमारी चाहतों के मेले
चंहू ओर, ........ सिर्फ तुम्हारी ही आवाजें हैं !
...
लो, बरसात भी पूरी तरह अब थम गई है
पर, जिस्म की भभक से धुंआ उठ रहा है !
3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-062012) को चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
bahut sundar rachana..
bahut khub....
:-)
ati sundar
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