ये मासूमियत है, या तेरी दरियादिली है
नासमझ बन के बहुत कुछ समझते हो ?
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न जाने कितने, दुआ, प्रार्थना, यज्ञ में लीन थे 'उदय'
और इधर तेज बारिशों ने मिट्टी के घरौंदे बहा दिए !
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तुम ज़मीर खरीदने आए हो या परचून मियाँ
जो, ... यहाँ भी मोल-भाव की बातें किये हो ?
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ऐ जिस्म के पुजारी, तू ज़रा कायदे में रह
कमसिन तो हूँ लेकिन, मूरत नहीं हूँ मैं ?
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अगर मकसद तेरा, इल्जाम ही लगाना है तो लगा
मगर, मेरे आंसू मगरमच्छी हैं ये इल्जाम न लगा !
1 comment:
बहुत खूब..
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