Tuesday, April 24, 2012

दरकती दीवारें ...

ढेरों तब्दीलियों के बाद, बामुश्किल बदल पाए हैं खुद को 
फिर भी तेरी यादें ... ...  उफ़ ! जेहन को छेड़ जाती हैं !!
... 
वह शब्दरुपी अंगारे उड़ेल कर चला गया है 'उदय' 
उफ़ ! लगता नहीं, जलन मिट पायेगी !!
... 
सच ! दरकती दीवारें बयां कर रही हैं हाल-ए-लोकतंत्र 
सख्त है बुनियाद, क्यूँ न इमारत नई खड़ी की जाए ?

4 comments:

Rajesh Kumari said...

सच ! दरकती दीवारें बयां कर रही हैं हाल-ए-लोकतंत्र
सख्त है बुनियाद, क्यूँ न इमारत नई खड़ी की जाए ?
vaah ....bahut umda khayaal hai.
teeno sher bahut achche ha

समयचक्र said...

बहुत सटीक...

आपका अख्तर खान अकेला said...

bhtrin badhaai ..akhtar khan akela kota rajsthan

***Punam*** said...

फिर एक नई शुरुआत .....
कर के देखी जाए...!