Tuesday, April 24, 2012

खलल ...

कल उसने 'उदय', बेहद नुकीले शब्दरुपी दांतों से काटा है 
उफ़ ! निशां को छोडिये, दर्द उम्र भर नहीं मिट पायेगा !!!
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अब रंज क्या करना 'उदय', जब चोर मालिक हो गए 
बुनियाद को क्यों दोष दें, जब इमारत कच्ची हो गई ! 
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उन्ने हमारी जिंदगी में, कुछ इस कदर खलल डाला है 'उदय' 
कि - कब सुबह होती है, औ कब शाम, मालुम नहीं पड़ता !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कहा, शब्दों का घाव जीवनपर्यन्त रहता है।