Sunday, April 1, 2012

ढंग ...

गर, जी भर गया था, तो मुझसे कह दिया होता
खामों-खां, झूठे इल्जामों की जरुरत क्या थी ?
...
हाँ, हम लिखते हैं, छपवाते हैं, और खुद बाँट देते हैं
ये तो एक ढंग है अपना, अंधेरों में जगमगाने का !!

2 comments:

देवेन्द्र पाण्डेय said...

रहबर एक पा जाये मंजिल हमारे यूँ भटकने से
समझो हो गया हासिल अंधेरे में जुगनियाने का।

प्रवीण पाण्डेय said...

स्वयं प्रसन्न रह औरों को प्रसन्न रखने का।