खता उसकी नहीं थी, फिर भी सजा उसको मिली है
तेरे इंसाफ़ के पलड़े, बहुत हलके हुए हैं !!
...
अकेले होने के लिए, मुझे खुद से दूर होना पडा है
तब कहीं जाके, मैं तुमसे दूर हो पाया हूँ !
...
न खता, न कुसूर, न शिकवा, न शिकायत
रूठना-मनाना, मुहब्बती दस्तूर हैं 'उदय' !
2 comments:
वाह...
खता उसकी नहीं थी, फिर भी सजा उसको मिली है
तेरे इंसाफ़ के पलड़े, बहुत हलके हुए हैं !!
एकदम सच्ची बात...
बहुत खूब..
सादर.
दस्तूर निभाया जाये..
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