जिसने देखे नहीं, सूखे चूल्हे गरीबों के !
न जाने क्यूँ -
वो खुद को, बदकिस्मत कहता है !!
जिसने देखे नहीं, अध-नंगे तन गरीबों के !
न जाने क्यूँ -
वो खुद को, बदकिस्मत कहता है !!
जिसने देखे नहीं, भूख में सोते बच्चे गरीबों के !
न जाने क्यूँ -
वो खुद को, बदकिस्मत कहता है !!
जिसने देखे नहीं, बगैर इलाज मरते बच्चे गरीबों के !
न जाने क्यूँ -
वो खुद को, बदकिस्मत कहता है !!
विरासतों में मिली अमीरी-गरीबी को भी देख
न जाने क्यूँ -
वो खुद को, बदकिस्मत कहता है !!
दबे, कुचलों को मिल रही सरकारी मदद को देख
न जाने क्यूँ -
वो खुद को, बदकिस्मत कहता है !!
2 comments:
सच है..कड़वा भी..
ek baar apne dukh ke samne doosre ka dukh rakh kar dekhe samajh me a jayega ki hamara dukh kitna bada hain...umda rachna..
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