आज फिर जख्म मेरे हरे-भरे हो गए
ज्यों ही, अन्दर झाँका मैंने आप ही !
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आज वह खुद ही चल कर बाजार में जा बैठा है
सच ! लग रहा है आज वो बिक जाएगा !!
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वक्त के हांथों हम कुछ इस तरह तराशे गए हैं
हीरे-मोती नहीं हैं, फिर भी कीमती हो गए हैं !
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सुना है, उसने खुद को बेचने की मन में ठानी है
न जाने कौन ? कब ? उसको उठा ले जाएगा !!
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वक्त की चोटों ने तराश के मूरत बना दिया है
न जाने किस घड़ी, हम भी 'खुदा' हो जाएंगे !
1 comment:
बहुत खूब....
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