उन्हें जब से खबर हुई है कि हम लट्ठ भारती हैं
तब ही से वे, खुद को अशोक स्तंभ समझ रहे हैं !
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वो सारी रात शमा जलाए इंतज़ार में बैठे रहे
उफ़ ! हम अंधेरे के इंतज़ार में बाहर खड़े रहे !
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किसने कह दिया तुमसे, कि हम ज़िंदा हैं
अकड़ देख के समझ जाना था, हो-ना-हो लाश ही है !!
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दो-तीन कविताएँ, और चार-पांच शेर, विदेश जा रहे हैं
सच ! उन्हें पासपोर्ट-वीजा की जरुरत नहीं है !!
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आज हर आदमी की जेब में एक आईना है
उसे खुद की कुरूपता से क्या लेना-देना है !
2 comments:
वाह, गहरे..
आज हर आदमी की जेब में एक आईना है
उसे खुद की कुरूपता से क्या लेना-देना है !
kash ki kabhi ye aaina apnee shakl dekhane ke liye bhi kaam mein laayen....
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