काश ! बेहयाई की हदें भी, मुकरर्र होतीं 'उदय'
तो दुनिया में खामों-खां इतना तमाशा न होता !
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सच ! अक्सर सुनते रहे हैं कि नंगे से खुदा भी डरता है
पर, ये किसने कह दिया, कि नंगे से नंगा नहीं डरता !!
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क्या खूब दिलासा दिया है, खुद को भी, उनको भी
पर हम जानते हैं, खोट सोने में नहीं, सोनार में है !
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ये हम, कैसे शहर के कैसे दस्तूरों से गुजर रहे हैं 'उदय'
जहां शब्दों के मेले में, शब्द नहीं चेहरे टटोले जाते हैं !
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उसकी भी अपनी मर्जी थी, अपनी भी अपनी मर्जी थी
उफ़ ! मुहब्बत, दो जालिमों के बीच पिसती रही !
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उफ़ ! वो आज, कुछ ऐंसे लिबास में नजर आए
लगा जैसे, कभी देखा नहीं हो बिना लिबास के !
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सब दवाएं उन पर बे-असर ही होंगी ! क्यों ?
उन्हें जिन्दे नहीं, मुर्दे पूजने की बीमारी है !!
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जी तो चाहे है, तुम पे फना हो जाएं
पर डरते हैं, कहीं तुम्हें खरौंच न आ जाए !
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लालच के चक्कर में यारा, खुद ने खुद को बेच दिया
एक समय मालिक थे, अब खुद ही खुद के नौकर हैं !
2 comments:
यही जीवन है
दो दो पंक्तियों में हकीकत बयां कर दी आपने....
माशाल्लाह....
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