इस बार -
उसका पेट भूखा नहीं था !
इस बार -
उसका गला प्यासा नहीं था !
फिर भी
वह
बहुत बेचैन -
व्याकुल सा नजर आ रहा था !
उसकी बेचैनी -
उबलती
तड़फती
बिलखती
खुंखार-सी नजर आ रही थी !
इस बार -
उसकी आँखें और आत्मा -
दोनों,
भूखी-प्यासी थीं !
वह
खूंखार दरिंदा भी नहीं था
फिर भी
उसे इस तरह देखकर
मेरे मन में
तरह तरह के सवाल -
उठ रहे थे ?
कि -
ये कैसा आम आदमी है
जो
खूंखार दरिंदों से भी जियादा खुंखार -
नजर आ रहा है !
क्यों ? ऐंसा क्यों ?
आम आदमी -
इतना भूखा, प्यासा, खुंखार, ... क्यों है ?
मैंने पूंछा -
क्यों भाई, इतना आक्रोश क्यों है ?
उसकी आँखें और चेहरा -
दोनों, सवाल सुनते ही, तम-तमा उठे !
खून उतर आया हो जैसे
कुछ पल सन्नाटा-सा पसरा रहा
फिर उसके हलक से -
एक आवाज गूंजी ... भ्रष्टाचार !!!
2 comments:
आम आदमी को जागने की ज़रूरत है सार्थक पोस्ट
बस वही एक ही वजह है।
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