मैं क्या है ? मैं कौन है ? मैं क्यों है ?
सरल शब्दों में कहा जाए तो 'मैं' कुछ और नहीं सिर्फ एक आईना है जो भी शख्स आईने के सामने खडा होगा उसे अपनी ही तस्वीर नजर आयेगी अर्थात 'मैं' सिर्फ 'मैं' नहीं हूँ वरन जो 'मैं' के सामने है वह 'मैं' है !
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो 'मैं' एक तस्वीर की आँखें है जब हम तस्वीर को, तस्वीर के किसी भी कोने से खड़े होकर देखते हैं तो यह प्रतीत होता है कि वह हमें ही देख रही है, ठीक इसी प्रकार 'मैं' है, दरअसल 'मैं' उस तस्वीर की आँखें है जिससे हम बच नहीं सकते कि वह हमें नहीं देख रही है !
तात्पर्य यह है कि 'मैं' कोई और नहीं है वरन जो उस 'मैं' के सामने खडा है वह खुद ही 'मैं' है अर्थात हम सभी जब जब 'मैं' के सामने होंगे, उस 'मैं' में हम ही होंगे !
'मैं' कोई अहम नहीं है, घमंड नहीं है, कोई विचारधारा भी नहीं है, सिर्फ एक आईना है, सिर्फ एक प्रतिबिंब है, सिर्फ एक व्यक्तित्व है !!
4 comments:
तात्पर्य यह है कि 'मैं' कोई और नहीं है वरन जो उस 'मैं' के सामने खडा है वह खुद ही 'मैं' है अर्थात हम सभी जब जब 'मैं' के सामने होंगे, उस 'मैं' में हम ही होंगे !
ये अलग बात है कि हम उस "मैं" से आँख नहीं मिलाते...
'मैं' कोई अहम नहीं है, घमंड नहीं है, कोई विचारधारा भी नहीं है, सिर्फ एक आईना है, सिर्फ एक प्रतिबिंब है, सिर्फ एक व्यक्तित्व है !!superb
यकीनन 'मैं' एक आईना है
मैं की कोई उपमा नहीं, मैं बस मैं हूँ..
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