Wednesday, January 4, 2012

'वटवृक्ष' त्रैमासिक पत्रिका : मेरी नजर में ...

'वटवृक्ष' त्रैमासिक पत्रिका का नवंबर-११ विशेषांक प्राप्त हुआ, देखकर व पढ़कर प्रसन्नता हुई, प्रसन्नता की एक छोटी वजह पत्रिका का सम्पादन रश्मि प्रभा के द्वारा किया जाना है वो इसलिए कि एक लम्बे समय से उन्हें ब्लॉग पर पढ़ते आ रहा हूँ उनकी रचनाओं ने मेरे पाठक मन को समय समय पर प्रभावित किया है !

ठीक इसी क्रम में रश्मि प्रभा द्वारा संपादित पत्रिका - वटवृक्ष को भी एक लय में पढ़ने का प्रयास किया है, मुख्य पृष्ठ पर महादेवी वर्मा रचित पंक्तियाँ - "चित्रित तू मैं हूँ रेखा क्रम ... तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या ... " पढ़ने मिलीं, इन पंक्तियों ने निसंदेह पत्रिका को पढ़ने के लिए एक ऊर्जा प्रदान की !

फिर हफीज जालंधरी की खून खौला देने वाली रचना - जिसको चाहें चीरें-फाड़ें, खाएं-पिएं आनंद रहें ... पढ़ते ही पुन: एक नई ऊर्जा का संचार महसूस हुआ !

इसके पश्चात सम्पादक की कलम से - पढ़कर बेहद प्रसन्नता हुई खासतौर पर ये पंक्तियाँ - " ... इस स्थिति में / न तुम्हें भूख का एहसास होगा / न भौतिक सुख याद आएंगे / अंधेरे में टकराकर / किसी दर्द का एहसास भी नहीं होगा ... " एक बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय रचना के माध्यम से सम्पादक ने अपनी भावनाओं व विचारों को अभिव्यक्त किया है जो निसंदेह सराहनीय है !

ठीक इसी क्रम में मनु की रचना की ये पंक्तियाँ ... मैंने तुम्हारे हांथों को / हांथों में मिलाया / दूर भविष्य में बजने लगी / शहनाई ... आशा शैली की रचना की पंक्तियाँ - ... आज उसकी शाख शाख / हमको हवा देने लगी / कब गिरें हम टूटकर ... अमृता तन्मय की रचना की पंक्तियाँ - ... मैंने बनाया / अपने विचारों का / एक बहुत बड़ा / मजबूत हथौड़ा ... वन्दना गुप्ता की रचना की पंक्तियाँ - ... मगर कभी सोचना जरुर / क्या तुम कभी / बनना चाहोगे / शक्ति, धरणी / एक नारी ... सुमन मीत की रचना की पंक्तियाँ - ... लघु चिंतन में / सिमट जाता / पूरा स्वरूप / बन जाता / फिर / एक रेट का महल ... संजय मिश्र 'हबीब' की रचना की पंक्तियाँ - ... मेरे ख़्वाबों का / सारा समंदर पीकर भी / वह ना खिला ... भारत तिवारी की रचना की पंक्तियाँ - ... समय हारता नहीं है / सुना था उसने / फिर भी लड़ता रहा ... अरुण चन्द्र राय की रचना की पंक्तियाँ - ... इस शोर को / अपने काँधे पर लादे / चला जा रहा हूँ मैं ... कैलाश सी शर्मा की रचना की पंक्तियाँ - ... किस्मत पर रोने / या हथेली की लकीरों को / दोष देने से / क्या होगा ? ... जयप्रकाश मानस की रचना की पंक्तियाँ - कि जैसे युद्ध से लौटता हो कोई / या आवाजों के ऐनवक्त / सधे कदमों के इंतज़ार में हैं ... उपरोक्त रचनाकारों की रचनाओं की पंक्तियों ने भी प्रभावित किया, रचनाकार लेखन व सम्पादक चयन के लिए बधाई के पात्र हैं, सभी को बधाई !

इसी क्रम में मीनाक्षी का कविताओं पर केन्द्रित लेख - 'चर्चा-परिचर्चा', डा. सुभाष राय का लेख - प्रगतिशील लेखक संघ का हीरक जयन्ती समारोह, डा. विनय दास की अभिव्यक्ति - हिन्दी का सुपर स्टार अब नहीं रहा, ... इस अंक के पठनीय व प्रभावशाली लेख हैं, सांथ ही सांथ इस अंक की ख़ास बात ये है कि यह अंक ब्लॉग और ब्लॉगर की लेखनी पर केन्द्रित है जो निसंदेह बेहद प्रसंशनीय है, इस प्रयास के लिए सम्पादक की बौद्धिकता व दूरदर्शिता बेहद प्रसंशनीय है ... वटवृक्ष के आगामी अंकों व उज्जवल भविष्य के लिए अनंत शुभकामनाएं !!

6 comments:

रश्मि प्रभा... said...

लोग पुरस्कारों की , टिप्पणियों की बात करते हैं ... मेरे प्रयास की प्रशंसा , मेरे ब्लॉग से आपका गुजरना - निःसंदेह मेरे लिए एक ज्ञानपीठ पुरस्कार ही है . आपकी कलम के एक एक शब्द ने मेरा उत्साह बढाया है ...

kshama said...

Rashmi Prabhaji ko anek shubh kamnayen!

प्रवीण पाण्डेय said...

वटवृक्ष ऐसे ही फैलता रहें, साहित्य की जड़ों तक।

सदा said...

आपकी कलम से वटवृक्ष और उसमें प्रकाशित रचनाओं की चर्चा को विस्‍तार से जाना .. अच्‍छा लगा इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिए आभार ।

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-749:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

कविता रावत said...

Yun hi vatvraksh falta fulta rahe yahi nek kamnana hai..
sarthak charcha prastuti ke liye dhanyavad..
Navvarsh kee haardik shubhkamnayen!