जिंदगी में कुछ हो या न हो, पर रुपया-पैसा जरुरी है
क्यों ? क्योंकि, बगैर उसके थम सी जाती है जिंदगी !
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कह तो रहे हैं लोग, इस शहर का नहीं हूँ मैं
कैसे करूँ यकीं, कि इस शहर का नहीं हूँ मैं !
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उम्र का हर मोड निराला, कुछ खोना - कुछ पाना है
क्या खोया ये छोडो पीछे, क्या पाना तय करना है !
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कौन, कब, किस नाम से मिल जाए, ये कौन जाने है ?
ये फेसबुकिया दुनिया है यारो, यहाँ सब के ठिकाने हैं !!
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लोग कुछ भी कहें, पर उतनी भी कडुवी नहीं है जुबां मेरी
सच ! चुभ तो जायेगी लेकिन किसी की जान नहीं लेगी !!
6 comments:
कौन, कब, किस नाम से मिल जाए, ये कौन जाने है ?
ये फेसबुकिया दुनिया है यारो, यहाँ सब के ठिकाने हैं !!
अच्छा लगा आपकी रचना पढ़ कर
कौन, कब, किस नाम से मिल जाए, ये कौन जाने है ?
ये फेसबुकिया दुनिया है यारो, यहाँ सब के ठिकाने हैं !!
अच्छा लगा आपकी रचना पढ़ कर
जीने के लिए पैसा ज़रूरी है ... पर सिर्फ पैसा ! मैं आज तक नहीं मान पायी, प्यार आज भी श्रेष्ठ है-
कड़ुवाहट कभी गुणकारी भी होती है।
पैसा बहुत कुछ तो है , सब कुछ नहीं !
पैसा ज़रूरी है , मगर सब कुछ यही नहीं है ...
जबान कडवी चुभती है , जान तो नहीं लेती ...
अच्छा लिखा है !
बढिया लिखा है ..
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