अरे भाई
कोई बताये, कोई समझाए !
ए.बी.सी.डी. ...
ये अलग अलग ... क्या फार्मूला है ?
क्यों बेफिजूल की बहस है ?
और क्यों बेफिजूल का लफडा है ??
क्या आप और हम
यह नहीं जानते, समझते
कि -
ए. और बी. ... भ्रष्टाचार की जड़ें हैं -
मजबूत तने हैं !
सी. और डी. तो महज -
फल, फूल, पत्ते, टहनियां हैं !!
गर मिटाना ही है भ्रष्टाचार, तो फिर
क्यूँ, किसी को, किसी से अलग रखा जाए
सब को एक सांथ घसीटा जाए
क्या छोटा, और क्या मोटा !
सब के सब, एक ही थाली के 'चटटे-बटटे' हैं !
इसलिए, क्यूँ न -
एक ही 'खलबटटे' में डाल के सबको कूटा जाए !!
छोडो ... ये ... ए.बी.सी.डी. ... का लफडा !
अलग अलग नहीं, वरन
सर्कस की भांति -
इन्हें ... एक ही 'हंटर' से पीटना होगा !
और तो और -
इन्हें ... एक ही 'बरेदी' के हांथों सौंपना होगा !!
वरना -
भ्रष्टाचार की 'बोल बम' होती रहेगी !
और जनता ... खामों-खां बैठ कर रोती रहेगी !!
भ्रष्टाचाररूपी 'दानव' के सिर्फ, हाँथ - पैर नहीं
वरन -
तन, मन, दिल, और दिमाग को भी
एक ही 'आरी' से काटना होगा
वरना -
न तो मरेगा 'दानव', और न मिटेगा 'भ्रष्टाचार' !
कोई बताये, कोई समझाए
अरे भाई ... ए.बी.सी.डी. ... ये क्या लफडा है ??
3 comments:
पर पूरी शब्दावलि को घेरा है।
prabhaavshali rachna abhivaykti....
badhiya prastuti ...
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