Friday, December 9, 2011

कुल्हाड़ी ...

एक अर्से से सुन रहा हूँ
सुनते आ रहा हूँ
तुम्हारी जुबान
कुल्हाड़ी-सी चल रही है !
बोलो -
कब तक चलते रहेगी ?
वह दिन दूर नहीं
जब
खच्च-खच्च आवाज से
कान मेरे
सन्न हो जायेंगे !
सोचो -
फिर क्या करोगे -
कुल्हाड़ी का ?
किसे काटोगे, या फिर
खुद को ही -
काट डालोगे तुम !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

पत्थर के मन, पत्थर के सनम।