एक अर्से से सुन रहा हूँ
सुनते आ रहा हूँ
तुम्हारी जुबान
कुल्हाड़ी-सी चल रही है !
बोलो -
कब तक चलते रहेगी ?
वह दिन दूर नहीं
जब
खच्च-खच्च आवाज से
कान मेरे
सन्न हो जायेंगे !
सोचो -
फिर क्या करोगे -
कुल्हाड़ी का ?
किसे काटोगे, या फिर
खुद को ही -
काट डालोगे तुम !!
1 comment:
पत्थर के मन, पत्थर के सनम।
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