कातिलों के हाँथ में क़ानून है
मुंह फाड़े, आँखें नटेर रहा आम इंसान है !
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जी करे है, बेईमानी सीख लें
अब कहाँ ईमान की पूजा हुए है !
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खुशनसीबी हमारी जो नींद खुल गई
वर्ना 'रब' ही जाने, कब सवेरा होता !
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सच ! न कालेज की डिग्री है, न पीएचडी हूँ
जो सामने दिखे है, उसी को ठोक देता हूँ !!
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आश्चर्य ! तुम मुझे अभी भी प्यार करती हो उम्मीदों के चिराग, क्यूँ बुझने नहीं देतीं ??
1 comment:
खुश रह लें घर में जैसे हैं।
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