Monday, December 12, 2011

हे ईश्वर ...

हे ईश्वर ! हे अन्तर्यामी ! हे पालनहार !
कब तक -
तू यूँ ही मेरी परीक्षा लेता रहेगा ?
कब तक -
तू यूँ ही मुझे झकझोरते रहेगा ?
कब तक -
तू यूँ ही मुझे हार-जीत में उलझाए रहेगा ?
मुझे मालुम है कि -
मैं तुझसे जीत नहीं सकता हूँ, इसलिए
तू आज से -
मेरी परीक्षा लेना बंद कर दे !
मैं जान गया हूँ कि -
तू मेरे अन्दर ही बैठा हुआ है !
बस इशारा करते चल -
जैसा तू चाहेगा, वैसा मैं करते चलूँगा !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

पूर्णसमर्पण, अर्धमना हो।