कहीं बेवजह ही, इस 'क्यूँ' में तो नहीं उलझे हुए हैं !!
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चलो खुशनसीबी है, विद्या की, कुछ तो रास आया
वर्ना आज के दौर में, सच्ची कसम खाता कौन है ?
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तुम नहीं, तो न सही, क्या हुआ
आज तुम्हारी भावनाएं सांथ हैं !
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आज जिसको देखो, वो हुआ सरकार हैअब देख समझ के भिड़ने की दरकार है !
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अब 'उदय' तुम ही सुनो, लोग कहते हैं वतन आजाद है
सच ! हमें तो, जिसको देखो वो 'बिजूका' लग रहा है !!
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खरीद-फरोख्त का दौर है, हर किसी का मोल है
खरीदे गए या बिक गए, मौके-मौके का मोल है !
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जब से पकड़ ली हमने, दोस्तों में दुश्मनी की नजर
तब ही से, सुकूं व चैन के मौसम की, आई है बहार !
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कुछ फर्क नहीं है चाहतों में, हम यह समझते रहे थे
जब देखा नजर से तुम्हारी, सब उल्टा-पुल्टा था !!!
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कुछ इस तरह उदास है सारा जहां
लग रहा ऐंसे, जैसे कोई मायूस है !
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सच ! हो हल्ला में हल्ला-बोल, आज चहूँ ओर ये नारा है
देश जा रहा भाड़ में देखो, फिर भी जय जयकार का नारा है !
...सच ! खण्ड खण्ड पाखण्ड बिछा है सत्ता के गलियारों में
राम ही जाने अब क्या होगा, खेतों और खलियानों में !!
2 comments:
haalat ki schchi tsvir pesh ki hai jnaab ne . akhtar khan akela kota rajsthan
सच ! खण्ड खण्ड पाखण्ड बिछा है सत्ता के गलियारों में
राम ही जाने अब क्या होगा, खेतों और खलियानों में !!
गजब की अभिव्यक्ति।
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