Saturday, December 3, 2011

हम इतना डरते क्यों हैं ?

आज नहीं तो कल, हम सबको मिट्टी में मिल जाना है
आज टूट जाने से ... हम इतना डरते क्यों हैं ?

तिनका तिनका, इधर उधर, हम इतना बिखरे क्यूँ हैं
गठरी बन जाने से ... हम इतना डरते क्यों हैं ?

लूट - डकैती मकसद जिनका, वो बैठे हैं सिंहासन पर
उनको धक्का देने से ... हम इतना डरते क्यों हैं ?

फिजाओं में जहर घुल रहा है, इन जहरीले दरख्तों से
इनको दफ़नाने से ... हम इतना डरते क्यों हैं ?

आग लग रही मुल्क में सारे, अपने घर के ही चिरागों से
ऐंसे चिराग बुझाने से ... हम इतना डरते क्यों हैं ?

6 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

डरते डरते जीवन बीता,
मन का कमरा रीता रीता।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह जी सुंदर

Unknown said...

बहुत ही सुन्दर!पढ़ कर ऐसा लगा कि मानो जैसे हम धीरे-धीरे डर की दुनिया से बाहर निकल रहे होँ।

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Anavrit said...

डर भाग गया ।धन्यवाद ।

Amit Chandra said...

डर ही तो है जो हमे कुछ करने से रोकता है. सुंदर रचना. आभार.