आज भी
ऐंसे बहुत से लोग हैं
जो चाहते हैं
कि -
भ्रष्टाचार -
फलता-फूलता रहे !
दुकानें सजी रहें
शो-रूम खुले रहें
चौपाल लगी रहे
मौज होती रहे !
जब
ज्यादा से ज्यादा लोग
यही चाहते हैं
तो कोई जाकर, उसे
समझाता क्यूँ नहीं !
कि -
हमें माफ़ कर दो
हम
भ्रष्टाचार के बगैर
जी नहीं सकते
जीना ही नहीं चाहते !
मान जाएगा बेचारा
कौन-सा
उसे भी कुछ
पीठ पे ले के जाना है
कौन-सा
वो
खुद के लिए लड़ रहा है !
उसे
तो सिर्फ
आने वाली पीढ़ियों की चिंता है
गरीब, असहाय, मजलूमों ...
की चिंता है !
वो मान जाएगा ...
खासतौर पर
उन बुद्धिजीवियों की बात
तो -
वो जरुर मान जाएगा
जो
आज भी, इन हालात में भी
बुद्धिजीवी होकर -
जनलोकपाल के विरोधी हैं !!
4 comments:
बहुत सुंदर और सटीक व्यंग....
अच्छा तरीका है अपनी बातों को कहने का... संशय तो मुझे भी है इस प्राणी के उद्देश्यों पे परंतु आपकी कविता बहुत अच्छी है...
सन्नाट व्यंग।
bhrastachar par bahut badiya saarthak samyik prastuti...
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