Wednesday, December 7, 2011

बूझो तो जानो ...

आजकल
बिलकुल नए टाईप के
हाइकू
क्षणिकाएं
रचनाएँ
पढ़ने को मिल रही हैं
ऐंसा नहीं कि -
आजकल ही लिखी जा रही हैं
वरन
ये ट्रेंड तो सालों से चला आ रहा है
सालों से मतलब ?
अरे हाँ भई -
हर युग, हर काल, हर समय में
धांसू टाईप के -
लेखक-कवि रहे हैं, जो लिखते रहे हैं !

वैसे मैं यह नहीं कहता कि -
लिखी नहीं जा सकतीं
लिखी जा सकती हैं, लिखी भी जानी चाहिए
क्यों, क्योंकि -
कविताओं को किसी निश्चित परिभाषा में -
बांधा नहीं जा सकता !
और तो और
कविताओं की कोई निश्चित परिभाषा होती भी नहीं है
जब नहीं है, तो लिखने में पाबंदी क्यों ?

नहीं होना चाहिए, बिलकुल नहीं होना चाहिए !
जिसका जो जी में आए, लिख सकता है
लिखने का पूरा-पूरा अधिकार है
मगर
मगर बोले तो, कम से कम ऐंसे -
हाइकू
क्षणिकाएं
रचनाएँ
तो न लिखें, जिन्हें पढ़कर लगे कि -
कोई पहेली पढ़ रहे हैं !
जी हाँ, मेरा अभिप्राय पहेली से ही है !!
अब पहेली बोले तो ... बूझो तो जानो !!!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

समझने में प्रयास करने के बाद ही आनन्द आयेगा।