Friday, November 4, 2011

अपनी अपनी धुन ...

सर्द रातें आ गई हैं
अब कौन निकाले -
कम्बल
रजाई
आओ, इधर आओ
सिमट कर
लिपट कर
हम ही सो जाएं ...
उन रातों की तरह
जब होती थी -
कड़कडाती ठंड बाहर
और हम
बिना कम्बल -
बिना रजाई के
लिपटे, सिमटे
सोये रहते थे ...
अपनी अपनी धुन में !

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

अपनी धुन में मन में गुनगुन..