Tuesday, November 29, 2011

मुझे ही गुनगुनाना चाहता है ...

गीत-गजल तो मैं हूँ नहीं 'उदय', फिर भी
वो मुझे ही गुनगुनाना चाहता है !

गर्म साँसें रोक पाना मुमकिन नहीं उससे, फिर भी
वो मुझसे सिमट के राह चलना चाहता है !

दुश्मन कहते थकता नहीं मुझको, फिर भी
वो मेरे संग ही कदम बढ़ाना चाहता है !

कल सब, बिछड़ के दूर हो जाऊंगा उससे, फिर भी
वो मुझे ही आजमाना चाहता है !

जिंदगी के सफ़र में उसे यकीं नहीं है मुझपे, फिर भी
वो मेरी यादों को सफ़र में चाहता है !

दिन के उजालों में उसे परहेज है मुझसे, फिर भी
वो अंधेरों में मुझे ही हमसफ़र चाहता है !

दो घड़ी का सांथ भी गंवारा नहीं उसको, फिर भी
वो मेरे ही संग जिंदगी बिताना चाहता है !

पत्थर दिल हूँ मैं, यह कहता फिरे है, फिर भी
वो इबादत में मुझे ही चाहता है !

गीत-गजल तो मैं हूँ नहीं 'उदय', फिर भी
वो मुझे ही गुनगुनाना चाहता है !!

2 comments:

Sunil Kumar said...

यह कैसी ख्वाहिश है मेरे भाई? बहुत खूब

प्रवीण पाण्डेय said...

गुनगुनाना ही मजा है।