गीत-गजल तो मैं हूँ नहीं 'उदय', फिर भी
वो मुझे ही गुनगुनाना चाहता है !
गर्म साँसें रोक पाना मुमकिन नहीं उससे, फिर भी
वो मुझसे सिमट के राह चलना चाहता है !
दुश्मन कहते थकता नहीं मुझको, फिर भी
वो मेरे संग ही कदम बढ़ाना चाहता है !
कल सब, बिछड़ के दूर हो जाऊंगा उससे, फिर भी
वो मुझे ही आजमाना चाहता है !
जिंदगी के सफ़र में उसे यकीं नहीं है मुझपे, फिर भी
वो मेरी यादों को सफ़र में चाहता है !
दिन के उजालों में उसे परहेज है मुझसे, फिर भी
वो अंधेरों में मुझे ही हमसफ़र चाहता है !
दो घड़ी का सांथ भी गंवारा नहीं उसको, फिर भी
वो मेरे ही संग जिंदगी बिताना चाहता है !
पत्थर दिल हूँ मैं, यह कहता फिरे है, फिर भी
वो इबादत में मुझे ही चाहता है !
गीत-गजल तो मैं हूँ नहीं 'उदय', फिर भी
वो मुझे ही गुनगुनाना चाहता है !!
2 comments:
यह कैसी ख्वाहिश है मेरे भाई? बहुत खूब
गुनगुनाना ही मजा है।
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