कल एक शख्स 'खुदा' सा नजर आया था हमें
आज वह भी, उँगलियों के कटघरे में है खडा !
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आज फिर से एक आस दिल में जगाई है हमने
जो तन्हाई में खोया था, भीड़ में मिल जाएगा !
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क्यूँ आसमां से होड़, आज हुई है मेरी 'उदय'
जबकि देती रही सुकूं, अब तक मुझे जमीं !
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'खुदा' जाने, ये मंजर, कब तलक यूँ चलते रहेंगे
न तो वो कुछ खुद कहेंगे, न हमें कुछ कहने देंगे !
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कब तक वो रहेंगे चुप, कब तक हम रहेंगे चुप
क्यूँ न आज, ये किस्सा यहीं ख़त्म किया जाए !
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तुम से मिलकर, हम होश खो बैठे हैं 'उदय'
सच ! अब न पूंछो, हमारा ठिकाना क्या है !
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किसी की पसंद को, नापसंद कहने का हक़ हमें नहीं है 'उदय'
उफ़ ! फिर भी लोग हैं, जो इसी में मस्त रहते हैं !!
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न जाने कौन है जो इस बस्ती में मुझसा फरेबी है
बात ही बात में, दो के चार करता है !
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झंडा पकड़ के घूमना तासीर है जिनकी
वो कह रहे हैं हमको, चिंकोटते हैं हम !
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गर वक्त ने चाहा तो, एक दिन हम तुम्हें भी रास आएंगे
आज न सही, किसी न किसी दिन, तुम्हारी दाद पाएंगे !
2 comments:
मस्त रहें यूँ, स्वस्थ रहें।
बहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति.....
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