कदम मेरे
उतने तेज नहीं चलते
जितने
शब्द मेरे चल पड़ते हैं !
फिर भी
चलते दोनों हैं
पर चलते
अपनी मर्जी से !
तन थक जाए
कदम रुकें ...
मन थक जाए
शब्द रुकें ...
रुक-रुक के
चलना, बढ़ना
दोनों को
हरदम होता है !
अब देखें
कब, कैसे, कौन
पहुंचता है
एक दूजे से पहले
मंजिल पे ... !!
2 comments:
बिलकुल सच है ये ....पर कड़वा तो नहीं ...
बहुत ही प्रभावी।
Post a Comment