ऐंसा नहीं मेरे मुल्क में, नोवल राईटर नहीं हैं
हैं तो बहुत लेकिन, वहां तक पहुंचे ही नहीं हैं !
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उफ़ ! बिना पढ़े ही ख़त, फेंके थे फाड़ के
अब दर दर भटक रहा, पता ढूँढते मेरा !
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ऐंसा नहीं कि मुल्क में हीरे नहीं हैं
अफसोस है कि - सहेजे नहीं गए !
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सुलझते सुलझते रिश्ते उलझ गए
बैठे-ठाले ही, लेने के देने पड़ गए !
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हमारे लाखों आदाब पे वो खामोश रहे
आज, खुदा हाफिज पे मुंडी हिला दी !
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किसी ने क्या खूब संशय पाल रक्खा है 'उदय'
दिल पे, दिमाग पे, आँखों पे यकीं नहीं करता !
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'रब' जाने, कौन, किस घड़ी जाग जाए
फिलहाल तो हम खुदी को आजमा रहे हैं !
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जब तक मुकद्दर की चाबी भरी हुई है
सच ! हर दौड़ हमारी जीती हुई है !!
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कोई टैग, कोई पोस्ट, तो कोई ग्रुप में जोड़े पड़े है
फेसबुक बला से कम नहीं, कोई कुछ पूंछता नहीं !
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बड़ी मुश्किल से, उनसे किताबें लिखी गई होंगी
सुनते हैं, बिना पैसों के उनसे कलम नहीं उठती !
2 comments:
हर जगह बस पहुँच कर भी रह जाते हैं।
khubsurat rachna....
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