जब तक
तुम निकल नहीं पाओगी
मेरी
चाहत से, यादों से
तब तक
तुम
कैंसे, मिल पाओगी
मेरे घर के
हिस्से-हिस्से, कोने कोने में !
मैं
कैंसे सोच लूं
कि -
तुम, शायद, कभी
निकल भी पाओगी
मेरे
ख्यालों से
जेहन से
धड़कनों से
लहु से
मेरे जीवन से ...
शायद ! नहीं
शायद ! कभी नहीं !!
1 comment:
प्रेम का जानलेवा कसाव।
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