Thursday, October 27, 2011

... खुदगर्जी सर-आँखों पे है !!

हम तो नहीं थे उनके, फिर भी उनको यकीं था हम पर
न जाने क्या बात थी, जो उनके जेहन में थी !!!
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जी तो चाहता है कि फना हो जाऊँ
पर सोचे फिरे हूँ किस पर होऊँ !
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मैं उनका नहीं हूँ, ये तो खबर है मुझको
क्या उनको खबर है कि वो मेरे नहीं हैं !
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न तो उसका था, और न ही खुदी का था
जिसने दिल से चाहा, मैं तो उसी का था !
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सच ! कोई कहता भी रहे, मुझे तुमसे मुहब्बत है
मत करना यकीं, जब तक खुद पे एतबार न हो !
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बहुत मुश्किल से सम्भाला है खुद को
कैसे कह दूं, मोहब्बत नहीं है तुम से !
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गरीबी, लाचारी, बेचारी, और जवां खुबसूरती
क्या कहने, अब कोई धर्म-कर्म की बातें न करे !
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तीन मरे, पांच मरे, हेडलाइंस बन गई है 'उदय'
उफ़ ! आज मौत की खबरें, सुर्ख़ियों में हैं !
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क्या गजब रंगरेज हुआ है नेता हमारा
उफ़ ! सुबह-शाम खुदी को रंगता दिखे है !
...
जरूरतें, जरूरतों को जन्म दे रही हैं
उफ़ ! खुदगर्जी सर-आँखों पे है !!

2 comments:

Ramakant Singh said...

गहरी सोच, संवेदना से लबरेज.

संगीता पुरी said...

जरूरतें, जरूरतों को जन्म दे रही हैं
उफ़ ! खुदगर्जी सर-आँखों पे है !!

बहुत खूब !!