Friday, October 7, 2011

... अपनों को गुनगुना रहे हैं !

दोस्ती का दंभ वो इस कदर भर रहे थे
लगा जैसे किसी किसी से डर रहे थे !
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अजब खेल, गजब तमाशे चल रहे हैं
अपने ही अपनों को गुनगुना रहे हैं !
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हमारी मुहब्बत को नक्काशी की जरुरत नहीं है 'उदय'
खुद सजती है, खुद संवरती है, चन्दा सी चमकती है !!
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दोस्तों की दोस्ती हम जब से भुलाने लग गए
सुन रहे हैं तब से उन्हें चक्कर आने लग गए !
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संघर्षों की इस दुनिया में संघर्ष हमारा नारा है
बिना घोर त़प किये किसने रावण को मारा है !
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जोकर बना फिरा, जो ताउम्र दर-बदर
सहता रहा वो गम, हंसता हुआ मरा !
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सच ! अजब खेल, गजब तमाशों का बोलबाला है
साहित्यकारों के अलावा सबका जय जयकारा है !
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राम अकड़ गया, रावण का सिर खिसक गया
बिना सोचे-समझे, उठा के सस्पेंड कर दिया !
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साहित्यिक ठेकेदारी खूब फल-फूल रही है
उफ़ ! सिर्फ कमीशन पर गाडी चल रही है !
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रावण मिलते कदम कदम पे, ये कलयुग की माया है
राम खड़े चुप-चाप देखते, रावण ने रावण जलाया है !

2 comments:

सूर्यकान्त गुप्ता said...

सचमुच रावण ने रावण को जलाया है…।
सुंदर रचना उदय भाई……॥

Suveer said...

सहता रहा वो गम, हंसता हुआ मरा !
क्या खूब लिखते हो उदय भाई... गहराइ है आपके लेख में.