सत्य-अहिंसा की राहें
सोचें, तब
मुश्किल लगती हैं
पर, जब
हम उन पर चलने लगते हैं
तब, वो
आसां होते चलती हैं !
सोचेंगे
कब तक सोचें हम
कब तक मन में
संशय रक्खें
जब तक, हम संशय रक्खेंगे
तब तक, राहें
हमें
कठिन, मुश्किल, लगेंगी !
कदम हमारे
जब बढ़ जाएं, फिर
हर मुश्किल आसां हो जाए
चलते-चलते, लड़ते-लड़ते
कदम हमारे बढ़ते जाएं
आज नहीं
तो कल हम होंगे
एक दिन 'गांधी' हम भी होंगे !!
2 comments:
संवेदना से भरी रचना। बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!
उत्साह भरी रचना।
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