मैं कल ही, गाँव से शहर आया था
चाय पीकर
दुकानदार को चवन्नी टिकाया था
दुकानदार चवन्नी देख कर
पहले तो मुस्काया था
फिर धीरे से घवराया था !
मैं भी, उसे देख कर
अचरज में पड़ गया
सोचा, मुझसे क्या गुनाह हो गया
अरे भाई, कुछ न कुछ तो हुआ ही था
तब ही तो वह
चवन्नी देख के सन्नाया था
थोड़ी देर, वो मुझे, मैं उसे, देखता रहा
फिर वह बोला -
क्यूं मियां, आज-कल
मंगल गृह की सैर खूब कर रहे हो
और धरती से बेखबर चल रहे हो !
चवन्नी तो बंद हुए एक अर्सा हो रहा है
और आपका -
आज भी चवन्नी से खर्चा चल रहा है !!
उसकी बातें सुन मैं सन्न रह गया
देख चवन्नी हाँथ में खिन्न रह गया
दूजा हाँथ जेब में डाला तो -
फिर से एक चवन्नी और निकल आई
फिर क्या था
चवन्नी देख देख मन प्रसन्न हो गया !!
मैंने कहा -
मियाँ आज तो रख लो
कल का कल देखेंगे, या फिर
आज की चाय उधार समझो
कल बैठ कर हिसाब-किताब कर लेंगे
कल तक हम
जरुर, चवन्नी की अठन्नी कर लेंगे !!
4 comments:
uday bhai abhtrin andaaz me vyngy kiya hai lekin udhaar prem ki qenchi hai ...akhtar khan akela kota rajstan
bahut khoob sateek kataksh.
बहुत खूब
बहुत खूब।
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