वो खामोशी में गुस्सा जता रहे थे
बात दिल की दिल में छिपा रहे थे !
हमने जब पूंछा सबब उनसे
तो रूठे-रूठे ही मुस्कुरा रहे थे !
हम इतने नादां थे, फिर भी
उनके दर को खट-खटा रहे थे !
रोज दे देकर तसल्ली दिल को
हम खुद को आजमा रहे थे !
कैसे टूटेगी अब ये उलझन मेरी
यही सोच सोच के घवरा रहे थे !
आस के मोहब्बती चिरागों को
बार बार बुझने से बचा रहे थे !!
5 comments:
वाह बेहतरीन
काश वे जलते रहें।
बेहतरीन.....
बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है.
कृपया पधारें
चर्चामंच-645,चर्चाकार- दिलबाग विर्क
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